विधानसभा चुनाव 2018: दतेवाड़ा निर्वाचन क्षेत्र
देश के कुछ सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में से एक दंतेवाड़ा विधानसभा क्षेत्र एक महत्वपूर्ण सीट है। यहां आए दिन नक्सली आम जनता और सुरक्षाबलों को घेरते रहते हैं। इस बजह से यहां पर विधानसभा चुनाव काफी अहम हो जाते हैं। नक्सिलयों के खौफ के बावजूद भी यहां की जनता लोकतंत्र के पर्व चुनाव में हिस्सा लेने आती है। दंतेवाड़ा विधानसभा हमेशा से एक ऐसी सीट रही है जहां जनता हर बार सरकार बदलती है। यहां कभी सीपीआई, कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा की सरकार बनी है।दंतेवाड़ा पहले बस्तर जिले में ही आता था, लेकिन 1998 में ये अलग जिला बना। 2011 की जनगणना के अनुसार, दंतेवाड़ा राज्य की तीसरा सर्वाधिक जनसंख्या वाला जिला है। इस शहर का नाम इस क्षेत्र की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी के नाम से पड़ा।
सीट का चुनावी महत्व
दंतेवाड़ा विधानसभा सीट एसटी सीट है, 2013 के चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। पिछले तीन चुनाव में इस सीट पर लुकाछिपी का खेल चलता रहा है, एक बार भाजपा तो एक बार कांग्रेस ने यहां जीत दर्ज की है। हालांकि, इस सीट पर सिर्फ भाजपा या कांग्रेस नहीं बल्कि सीपीआई का भी अच्छा जनाधार है। 2008-2003 के चुनावों में सीपीआई यहां दूसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी थी। इस सीट पर आदिवासी वोटों का काफी प्रभाव है।2013 में इस विधानसभा कांग्रेस जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के देवती वर्मा को 41417 वोट प्राप्त हुए थे। भाजपा के भीमाराम मांडवी को सिर्फ 35430 वोट ही मिल सके। 2008 विधानसभा चुनाव में भाजपा के भीमाराम मांडवी ने जीत हासिल की और उनको 36813 वोट प्राप्त हुए थे और उसके बाद सीपीआई के मनीष कुंजम को 24805 वोट प्राप्त हुए थे। अब अगर 2003 की बात करें तो कांग्रेस महेंद्र कर्मा ने 24572 वोट प्राप्त किए थे और जीत हासिल की थी। वहीं सीपीआई के नंदा राम सोरी को 19637 वोट ही मिल सके।
अंतिम बार 2 नवंबर, 2018 को अपडेट किया गया