विधानसभा चुनाव 2018: बाड़मेर में विकास नहीं बल्कि जाति एक अहम मुद्दा
भौगोलिक दृष्टि से बाड़मेर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र भारत का सबसे बड़ा संसदीय क्षेत्र है। बाड़मेर विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस गढ़ के अलावा एक आम सीट भी है। यहाँ पर रहने वाले अधिकतर लोग ग्रामीण क्षेत्र के हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, इस क्षेत्र में 370721 की कुल आबादी है जिसमें 72.8% ग्रामीण और 27.2% शहरवासियों से संबंधित हैं। कुल जनसंख्या में 15.2% अनुसूची जाति और 4.66% अनुसूची जनजाति शामिल हैं। 2017 की मतदाता सूची के अनुसार, बाड़मेर विधानसभा क्षेत्र की कुल आबादी 223808 है। 2014 में मतदान 75.97 जबकि 2013 में यह 78.8 प्रतिशत था। निर्वाचन क्षेत्र में राजपूत, जाट, अनुसूचित जाति और अल्पसंख्यक मतदाताओं का प्रभुत्व है। अनुसूचित जाति और अल्पसंख्यक समुदाय को कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक माना जाता है। निर्वाचन क्षेत्र में निर्णायक भूमिका राजपूतों और जाटों के पास है। वहाँ के लोग जाति के आधार पर मतदान करते हैं, उनके लिए विकास एक प्रमुख मुद्दा नहीं है।अगर हम बाड़मेर में 2013 के विधानसभा चुनावों के नतीजों पर गौर करते हैं, तो कांग्रेस उम्मीदवार मेवाराम जैन ने भाजपा की उम्मीदवार डॉ. प्रियंका चौधरी को 5913 वोटों के अंतर से हराकर दूसरी बार यह सीट जीती थी। जैन को 63955 मिले थे जबकि चौधरी को 58042 वोट मिल सके थे। साथ ही भाजपा की बागी नेता मृदरेखा चौधरी 19518 के वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रही। वर्ष 2008 में, मेवराम जैन ने 24044 मतों के अंतर से भाजपा उम्मीदवार मृदरेखा चौधरी को हराया था। जैन को 62219 मिल थे जबकि मृदरेखा चौधरी को 38175 वोट मिल सके थे।
वर्ष 2003 में चुनावी परिदृश्य अलग था। तकदीर ने भाजपा को अगले पांच सालों तक इस सीट पर शासन करने का निर्णय लिया। पार्टी के उम्मीदवार तागा राम ने कांग्रेस उम्मीदवार वर्दी चांद जैन को शिकस्त दी थी। तागा राम को 65780 वोट जबकि वर्दी को मात्र 35257 ही वोट मिले पाये थे। विजेता वोटों का अंतर 30523 था। तकदीर फिर से अगले चुनावों में कांग्रेस की तरफ हो गई और तब से कांग्रेस यहाँ पर शासन करती आ रही है। इस बार भी कांग्रेस सीट जीतने की ज्यादा संभावना दिखाई दे रही है।
Last Updated on October 29, 2018